मौत को गले लगाऊँ क्यों?
मौत को गले लगाऊँ क्यों?
मैं मौत को गले लगाऊँ क्यों,
वो खुद आयेगी वक्त पर,
मार खुद का हत्यारा बनू मैं,
लगा कलंक लूँ रक्त पर|
मिला नही कुछ जीवन में तो,
क्या त्याग प्राण दूँ मैं अपने,
जिनने मुझको जन्म दिया,
वो देखे क्या होगें सपने?
जो टकटकी लगाकर देख रहे,
फूलते फलते मुझे आँगन में,
जीते जी जहाँ सब कुछ मिलता,
फूल कलि बाग बाँगन में|
मरकर क्या हासिल कर लूँगा,
आती देख परेशानी को,
मन में रख द्वेष भावना या,
अपने पराये की बेईमानी को|
मिला नही पर मिल सकता है,
जीता रहा यदि जग में,
खूब चाहत पाल रखी है,
दौड़ खुशी रही रग रग में|
फिर जरा सा गम की कर परवाह,
खुद को आग लगा दूँ मैं,
यह अधिकार मुझे नही मिला,
मार के खुद को मिटा दूँ मैं|
अच्छा होगा मेहनत करके,
जीवन को धन्य बना लूँगा,
जितनी भी परेशानी आये,
खुद के जीवन का बचा लूँगा||