मैंने वक़्त देखा है
मैंने वक़्त देखा है
मैंने घन बरसते देखा है और मन तरसते देखा है,
जब घन घोर बरस कर चला गया तो मन बरसते देखा हैI
मैंने सादगी को देखा है और आवारगी को टोका है,
जब आवारगी भी चली गयी तब सादगी ने रोका हैI
मैंने हुस्न को पलते देखा है और इश्क़ को जलते देखा है,
जब हुस्न भी वो चला गया इश्क़ तरसते देखा हैI
मैंने अपनों का धोका देखा है गैरों को खोते देखा है,
अपने भी जब छोड़ चले अपना गैरों को होते देखा हैI
मैंने खुद को खोते देखा है तुझको पाते देखा है,
खुद को भी जब पा लिया तुझे अपना होते देखा हैI
मैंने भ्र्म को पलते देखा है सच पिघलते देखा है,
भ्र्म भी भस्म जब हो गया तो सच मचलते देखा है !