मैं
मैं
मैं वो जमीन तेरी जहाँ
मीलों का सफर तू तैर कर,
साथ चलूँ तेरे कदमों के
निशान समेटकर।
मैं वो आसमान तेरा
जहाँ चांद गहराता जाऐ,
तेरी कड़कती धूप में मेरी
चांदनी का पहरा बढ़ता जाऐ।
मैं वो किताब तेरी
तू हर पन्ना पढ़ता जा,
लब्ज बनकर उंगलियों
पे ठहरूंगी,
तू बेशक इसे धूल समजता जा।
मैं वो दीवार तेरी,
जो तुमने पत्थरों से है सींची
मेहमान बनके आना कभी
हमने घर की ईंट इसपे रखी।
मैं वो राह तेरी,
मुसाफिर बनके आना तुम
जरियॉं हमेशा बनूगीं
मुकाम हमें बनाना तुम।
