मैं तुलसी तेरे आंगन की
मैं तुलसी तेरे आंगन की
जिंदगी को अपने राह पर चलते-चलते,
जोड़ दी गई मैं तेरे राह से
तेरे राह को तो अपना लिया पर
सोचा नहीं था कि अपनी राह को ही भूल जाऊंगी।
निकल पड़ी उस राह पर तेरे पीछे-पीछे,
तुझको अपनाया तेरे अपनों को अपनाया,
पर सोचा नहीं था कि अपने ही रिश्ते पीछे छोड़ आऊंगी।।
तेरे आंगन की तुलसी बनीं,
तुझे अपना रब और सब बनाया।
तेरे सपनों को, विचारों को, अरमानों को अपने जीवन का आधार बनाया।
तुझसे अपनी पहचान बनाई, तुझे अपना सर्वस्व बनाया।।
मंशा है कि अब तो यही, मेरे जीवन की हर सांस चले,
लहू की हर बूंद बहे सदा तेरी खुशियों के लिए।।