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GUDDU MUNERI "Sikandrabadi"

Abstract

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GUDDU MUNERI "Sikandrabadi"

Abstract

मैं सोच रहा हूँ यहाँ

मैं सोच रहा हूँ यहाँ

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मैं सोच रहा हूँ यहाँ 

तुम सोच रही हो वहाँ 

कब हो जाए हम 

एक और एक ग्यारह।


एक और एक ग्यारह

एक और एक गयरह।

इस नगरी के इस महल में 

हम दोनों की एस पहल में 

प्यार का कोई मोल नही 

आ मिल जाए और फ़िर बनाए 

एक और एक ग्यारह।


एक और एक ग्यारह

एक और एक गयरह।

प्यार किया तो डरना क्या 

ना बजेंगे किसी के बारह 

क्युंकि हम तो है 

एक और एक ग्यारह।


एक और एक ग्यारह

एक और एक गयरह।

प्यार की दुनिया का 

एक वही रचेता,

जिसके चाहे गम और 

जिसको चाहे खुशियाँ दे दे

और फ़िर बन जाए 

हम एक और एक ग्यारह।


एक और एक ग्यारह

एक और एक ग्यारह।


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