मैं प्रेम पर नहीं लिखता..
मैं प्रेम पर नहीं लिखता..
मैं प्रेम पर नहीं लिखता.. लोगों को ग़लत फ़हमी है..
मैं आप पे लिखता हूँ.. आपसे कोई सीधा से रिश्ता नहीं है मेरा..
दोस्त, प्रेमिका, संगिनी, साथी सब अंश है आपके स्व्भाव का..
मेरे लिए आप प्रेम हो..
जिसकी असीमित सीमाओं को मैं आपके आँखो में देखता हूँ..
जिसका ना तो क्षेत्रफल निकाल पाना संभव है
और न ही आयतन निकाल पाना..
जिसमें सिर्फ़ डूब जाना ही सम्भव है..
डूब के जीने के लिए..
पार पाने के लिए..
दरसल प्रेम की त्रिज़्या का दायरा
बड़ा छोटा हो भी सकता है
पर केंद्र हमेशा आप में ही आकर अटकता है..