'मैं नदी हूँ'
'मैं नदी हूँ'
छुड़ा के पर्वत से बांहें,
चुनती हूँ मैं अपनी राहें,
अनवरत ,मैं बहती चलती हूँ,
खुद गिरती और सम्हलती हूँ,
जो भी राहों में आता है,
मेरा साथी बन जाता है,
मैं नदी हूँ ,मेरे नाम अनेक,
लेकिन मेरा उद्गम है एक,
मेरी यात्रा का सार यही,
सागर से जा मिल जाऊं कहीं,
नित समय के पथ पर चलती हूँ,
जीवन सी रंग बदलती हूँ,
ये सीख मेरी सब सुन लो अब,
जीवन की राहें तुम चुन लो जब,
तय कर लो, फिर तुम रुको नहीं,
नदी के जीवन का भेद यही।
