मैं नारी हूं
मैं नारी हूं
मैं नारी हूं तो क्या हुआ, क्या फूल सा खिलना मेरा अधिकार नहीं ?
क्यों रौंदा जाता है मुझको, मैं भी उड़ना चाहती हूं मापना चाहती हूं
आकाश की ऊंचाइयों को, ला सकती हूं तोड़ कर मैं भी तारे आकाश से।
है ख़्वाहिश मेरे भी अन्दर एक सुन्दर कविता बनने की, पढ़-लिख
कर के नया इतिहास रचने की, है मुझको भी तो अधिकार ख़्वाब देखने का।
मैं नारी हूं आज के युग की, नहीं रह सकती मैं बन कर बंदिनी।
नहीं है मेरी सीमा अब केवल घर की रसोई तक सीमित, ना ही बन के रह सकती
मैं केवल बिस्तर की सजावट, नहीं हूं मैं कोई शय हवस मिटाने की ।
नहीं कर सकती मैं अब सपनों को अपने चूर-चूर, ..... हां रच रही हूं मैं
इतिहास नया, बढ़ रही मैं आगे आज हूं बन कर के एक मिसाल समाज में
मेरे प्रति ना दिखाए कोई भी सहानुभूति ये मेरा अधिकार है।
मैं नारी हूं.... कांच सी नाज़ुक भी, मोम सी पिघलती, पाहन सी कठोर भी
सहनशीलता धरती सी, विशालता अम्बर सी है ..... हां मैं नारी हूं।