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Vishu Tiwari

Abstract Classics Inspirational

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Vishu Tiwari

Abstract Classics Inspirational

मैं नारी हूं असहाय नहीं

मैं नारी हूं असहाय नहीं

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मैं ही हूॅं वो शक्ति स्रोत नर को जिसने है पाला,

वो मैं ही हूॅं अमृत देकर पीती रहती हूॅं नित हाला,

सपने तेरे साकार किए अपने सपनों को तोड़ दिए,

मैं ही हूॅं वो मातृ शक्ति जिसने जगती को संभाला।।


मैं ही जगती का शक्तिरुप सारा जग प्रतिबिंब मेरा,

मैं ही समाज की संरक्षक हे नर मैं ही अवलम्ब तेरा,

असहाय रहा जब जीवन में जो शक्ति भरी वो मैं हूॅं,

मैं नारी हूॅं असहाय नहीं रे नर हूॅं एक आलम्ब तेरा।।


जो दिया प्रेम मैने तुमको उसका ऋण ना मांग रही हूॅं,

स्निग्ध हृदय से सींचा है बदले में कुछ ना मांग रही हूॅं,

जो है महान तू बना हुआ कुछ योगदान मेरा भी है,

साकार हुआ सपना तेरा अब भी श्रमदान कर रही हूॅं।।


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