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अर्चित तिवारी

Crime Drama Inspirational

1.6  

अर्चित तिवारी

Crime Drama Inspirational

मैं नाजुक कली हूँ

मैं नाजुक कली हूँ

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मैं नाज़ुक कली हूँ,

महकती रहूँगी,

मैं गाती रहूँगी,

चहकती रहूँगी।


कुचल यूँ ना ऐसे,

हँसेगा जमाना,

कहीं और होगा,

मेरा आशियाना।


उसी घर में शायद,

सिसकती रहूँगी,

मैं नाज़ुक कली।


खिली जो तेरे घर,

तड़प तुझमे देखा,

खुशी तो दिखी ना,

घुटन तुझमे देखा।


तू ना चीख़ ऐसे,

मैं डरती रहूँगी,

मैं नाजुक कली।


अगर मैं खिली तो,

तेरा घर खिलेगा,

अगर मैं जली तो,

तेरा घर जलेगा।


मुझे अब जलाकर,

तुझे क्या मिलेगा,

तेरे घर के कोने में,

पड़ी मैं रहूँगी,

मैं नाजुक कली।


क्यूँ डरते हो मुझसे,

किया क्या है मैंने,

सिवा बेरुखी के,

लिया क्या है मैंने।


जो माँगी थी ममता,

वो ना दे सके तुम,

तेरे प्यार को मैं तड़पती रहूँगी,

मैं नाजुक कली।


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