मैं नादान
मैं नादान
नादान हां नादान थी मैं
इस नादानी में बहुत से सपने बुन लिए
जानती नहीं थी इस दुनिया को
लोगों ने अपना निज़ाम बना रखा है
लोगों के बीच उठने बैठने के लिए
नादान हां अब भी नादान हूं मैं
क्यूंकि नहीं जानना चाहती
के यहां लोग जीते कैसे हैं
बस पर खोल के उड़ जाना चाहती
ये आसमान देखना है
और सितारे छूने हैं
ज़मीन पर तेज़ दौड़ना है
पर ये सपने अब भी अधूरे हैं
क्यूं सब चाहते हैं मैं उनके कहे अनुसार चलूं
क्यूं सब चाहते हैं अब मैं नादान ना रहूं
नादान रहूंगी मैं
समझदार बन्ना किसे है
मत करो मुझपे यकीन
खुद पर एतबार मुझे है
अपनी नादानी के किस्से सुनाऊंगी
कैसे जिया ये ज़िन्दगी ,अपने दम पर बताऊंगी
सिर्फ एक तरह जीना ही तो जीना नहीं है
है बहुत सी चीज़ें दुनिया में
नज़रिया बदलते उनका मज़ा बदल जाएगा
तुम भी जीने की चाह में नादान बने रहना
लोगों के बनाये इस निज़ाम में
अपने सपने ना बदलना
