और हर बार थोड़ा और कस के कहीं खुल ना जाए फिर दोबारा। और हर बार थोड़ा और कस के कहीं खुल ना जाए फिर दोबारा।
मैं टूटती थी हज़ारों टुकड़ों में हर रात, हर सुबह खुद को वापिस समेटती थी! मैं टूटती थी हज़ारों टुकड़ों में हर रात, हर सुबह खुद को वापिस समेटती थी!
गुज़रे लम्हों के दोबारा पन्ने खोल रही हूँ मैं गुज़रे लम्हों के दोबारा पन्ने खोल रही हूँ मैं
बस पर खोल के उड़ जाना चाहती ये आसमान देखना है और सितारे छूने हैं बस पर खोल के उड़ जाना चाहती ये आसमान देखना है और सितारे छूने हैं
वोट की तू ताकत समझ, इसे न जान व्यर्थ बोल है वोट की तू ताकत समझ, इसे न जान व्यर्थ बोल है