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Hrishi Camble

Romance

3  

Hrishi Camble

Romance

मैं क्या करू

मैं क्या करू

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मैं क्या करूं इस रात का जो आज भी नींद के नाकाबिल रही है ?

मैं क्या करूं उन ख्वाबो का जो रूठे हैं नींद न आने के सबब ?

ये तकिया ये बिस्तर जो रोज़ बिछते हैं इस उम्मीद में

कि आज उनके दामन पे सिलवटों के दाग नही होंगे, मैं उनका क्या करूं ?

मैं क्या करूं इस रज़ाई को जो रोज़ बन जाती है कफ़न एक ज़िंदा लाश लपेटे हुए ?

वो दिन जिसका हर एक लम्हा गुज़रता है

ज़ेहन के ऊपरी परत पर तुझे सजाये हुए, उसका मैं क्या करूं ?

मैं क्या करूं इन आखों का जो तेरे अलावा किसी को देखना भी नहीं चाहतीं

वो होंठ जो तरसते हैं तेरे माथे को उनका मैं क्या करूं ?

मैं क्या करूं उस शर्ट का जो कल भी खूंटी से लटकी रही नाराज़,

जिसे बोझल होना था तेरे आखों के गिरते हुए आसुँओं से

मैं क्या करूं इन सवालों का जो सारी रात सताते हैं मुझे ?

मैं क्या करूं उन जवाबों का मिलना नहीं चाहते हैं मुझे,

मैं क्या करूं इस सुबह का जिसे आने में इतनी मुश्किल 

रही है ,

मैं क्या करूं इस रात का जो आज भी नींद के नाकाबिल रही है ?



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