मैं किसी का गुलाम नहीं
मैं किसी का गुलाम नहीं
जिंदगी मेरी है
ख्वाहिशें मेरी है
मैं कुछ कर ना पाऊँगा
ऐ बातें सब तेरी है।
मंजिल पाने के अलावा
कोई काम नहीं
मैं किसी का गुलाम नहीं।
रात को सोता हूँ
स्वपन देखता हूँ
राह भटकता हूँ
लेकिन फिरभी
चलता हूँ।
ठोकर खाता हूँ
गिर जाता हूँ
फिर उठता हूँ
चलने लगता हूँ।
ये बातें सारी आम नहीं
मैं किसी का गुलाम नहीं।
फकीर बन चल पड़ा हूँ
कांटों भरी राह में खड़ा हूँ
कई पराये कई अपनों से लड़ा हूँ
हारा हुआ किसी अंजान
द्वार आ खड़ा हूँ।
अब वापस लौटने का दम नहीं
मैं किसी का गुलाम नहीं।
परवाह अपनी करता नहीं
बेवफाओं पर मरता नहीं
पर्वत समुन्दर से डरता नहीं
इतने में दिल भरता नहीं।
टूटकर बिखर जाऊँ,
ऐसा अंजाम नहीं
मैं किसी का गुलाम नहीं।