STORYMIRROR

Jaydip Bharoliya

Romance

2  

Jaydip Bharoliya

Romance

में बदलने लगा हुं - २

में बदलने लगा हुं - २

1 min
240


जहां तुम होती थी, बिन बुलाये आता था वहां मैं

कितना मशहूर हो रहा हूँ, अब इस जहां में

अंदाज मत लगा मेरी खुशियों का

इसे पाने के लिये,

तेरे दिये दर्द में कई दिन रहा मैं।


तुझे छोड़, किसी और की फिक्र करने लगा हूँ

धीरे धीरे ही सही लेकिन, मैं बदलने लगा हूँ

वो मुश्किलें थी तुम्हारे प्यार को पाने की

फिक्र नहीं तुम्हारे जाने की या लौट आने की।


मिटाते रहो तुम, हुस्न की चाहत गैरों की बाहों में

क्यूँकि हर घड़ियां बीत चुकी है तुम्हें समझाने की

जिंदगी में खाई ठोकरों को भुलने लगा हूँ

धीरे धीरे ही सही लेकिन, मैं बदलने लगा हूँ।


तुमने हाथ छोड़ा तो औरों ने हाथ पकड़ लिया है

महफिलों के दौर ने अब मुझे जकड़ लिया है

प्यार के गुलामों की बस्ती में,

मेरा बसेरा हुआ करता था।


तुम्हारी यादों में कभी दिन सुनहरा हुआ करता था

अब तो हर दिन शेरों, शायरियां करने लगा हूँ

धीरे धीरे ही सही लेकिन मैं बदलने लगा हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance