मैं खुशबू का व्यापारी हूँ
मैं खुशबू का व्यापारी हूँ
मैं खुशबू का व्यापारी हूँ,
मैं गुलशन नये लगाता हूँ।
कागज़ पे भावों के पौधे,
मैं लगा बहुत सुख पाता हूँ।।
ये कागज़ दिल का कागज़ है,
ये पौधे हैं चेतनता के।
मैं चारागर पीड़ाओं का,
मेरे सुख दुख हैं जनता के।।
मैं दवा दर्द की करता हूँ,
मैं मानवता फैलाता हूँ।
मैं खुशबू का व्यापारी हूँ,
मैं गुलशन नये लगाता हूँ ।।
मैं बुद्धि की स्याही से तर,
कर कविता कलम चलाता हूँ।
मैं राह भटकते पथिकों को,
यूं मंज़िल पे पहुँचाता हूँ।।
अविराम सफर है मेरा ये,
हर बाधा से टकराता हूँ।
मैं खुशबू का व्यापारी हूँ,
मैं गुलशन नये लगाता हूँ ।।
मैं अंतर्मन के भावों को,
आवाज़ बनाने निकला हूँ।
मैं शिल्पकार हूँ वाणी का,
परचम लहराने निकला हूँ।।
बदलाव मेरा किरदार रहा,
कब पीछे कदम हटाता हूँ ।
मैं खुशबू का व्यापारी हूँ,
मैं गुलशन नये लगाता हूँ ।।
क्या कहती है दुनिया मुझ को,
मैं इसकी फ़िक्र नहीं करता।
मैं अपने निर्धारित पथ पर,
बढ़ने से कभी नहीं डरता।।
मैं हवा बनाता हूँ अनन्त,
संदेश नये पहुँचाता हूँ ।
मैं खुशबू का व्यापारी हूँ,
मैं गुलशन नये लगाता हूँ।।
