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Manjubala Kabi

Abstract

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Manjubala Kabi

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मैं खुद एक कविता

मैं खुद एक कविता

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मैं हूँ खुद कविता

जन्म के बाद और मृत्यु के बीच की

उन्मत् आर्तनाद

प्रणय कि प्रथम श्रृंगार और

घृणा कि मैं ही हूँ शेष अपवाद

कोइ पंक्ति नहीं हूँ मैं

मैं हूँ अन्तरात्मा कि नीरव चिन्ह

गति कि उद्गाता

मैं हूँ खुद कविता।


मैं ही हूँ प्रभात कि उदित किरण

उर शाम कि अस्त किरणों

का समाहार

आनन्द कि लहर मैं हूँ

और दुख कि पुकार   

कोई शब्द नहीं हूँ मैं  

सुन्दरतम सृष्टि कि मैं ही हूँ

निशब्द वन्दिता

मैं हूँ खुद कविता।


मैं हूँ शाम् कि अराधना और

भोर कि तपस्या

आती जाती श्वास का

मैं हूँ लयबद्ध नाद

मैं कोई भाषा नहीं हूँ

मैं हूँ समस्त जड़ चेतन मैं

द्रबिभुत परम सत्ता,

मैं हूँ खुद कविता।


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