मैं गरिमा हूँ
मैं गरिमा हूँ
मैं गरिमा हूँ उस बगिया की
जहाँ राम के चरणों की धूल पे
रखी गई गंगा के लहरों की नींव थी
जहाँ शंभू ने उस संसार को
दी एक नई उम्मीद थी
जहाँ चंदा की शीतलता ने
उस बगिया की गौरव बढ़ाई
जहाँ गौतम के छूते ही गगन
उस बगिया में खुशबू छाई
उम्मीद भरी इस दुनिया में
फिर एक नन्ही परी तृष्णा आई
जहाँ अपनेपन के इक माली ने
बगिया में परिवार रुपी बीज लगाई
मैं उस बगिया की गरिमा हूँ
जहाँ आकर मैं इस घर की बेटी कहलाई।
