मैं एक नारी हूँ
मैं एक नारी हूँ


जाने क्यों कहते हैं लोग एक कोरा कागज़ है नारी
न कोरा है और न कागज़ है नारी
खुद मेंं एक मुकम्मल किताब है नारी
कभी किसी के लिए चेहरे की खुशी तो
कभी किसी के लिए दिल का दर्द
कोई देेेेेखता है इनको अच्छी नजरोंं से तो
कोई देखता है शिकारी के नजरों से
सहम जाती हैं वे ,
खुद को समाज की पिंजरे में कर लेती हैं बंद
जहाँ एक ओर नारी आसमान की छूती हैं बुलंदी
वहीं दूसरी ओर इन्हे धरती के नीचे दफनाया जाता है
जिस देेश
ने इन महान नारियों को जन्मा है
कहीं रानी लक्ष्मीबाई तो कहीं मदर टेरेसा
उसी देेेेेेश ने उन नारी को भी जन्मा है
जो कुंदला पीड़िता जैसे अभागन है
कभी इन्हें सरहना दिया जाता है तो
कभी इन्हें सहारा दिया जाता है
इसी सोच में यह दुुनिया बढ़ तो गई है
पर लोगों की सोच और नजरिया को न बदल सकी है
अब न होता यह जुल्म -व -सितम
बस रहम.... रहम ...... रहम!