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Aastha Jain

Romance

4.5  

Aastha Jain

Romance

मैं बैठी हूं सरहद के इस ओर

मैं बैठी हूं सरहद के इस ओर

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मैं बैठी हूं सरहद के इस ओर

तुम्हारी यादों के कुछ सूखे पत्ते बटोर

हर पत्ते में लिखीं है मैंने तुमसे जुड़ी कई बातें

तुम्हारे साथ रहने की वो कसमे

और तुम्हारे साथ गुजरी वो रातें


मैं बैठी हूं सरहद के इस ओर

जहां अंधेरा होने के बाद भी

तारे अब पहले से चमकते नहीं

जहां दिन चढ़ने के बाद भी 

सूरज में पहले सा अब कोई तेज नहीं


मैं बैठी हूं सरहद के इस ओर

जहां तुम्हारा प्रवेश वर्जित है

और गर आ भी गए मेरी चौखट पर

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तो ये जान कर आना की मेरी सरहद मेरी चौखट है

मैं लांघ नहीं सकती मेरी चौखट का ये द्वार


मैं बैठी हूं सरहद के इस ओर

जहां मेरी आंखो में मोती आज भी सजते है

और गर छलक जाए ये मोती कभी

तो मेरी आंखो के काले काजल को वो धीरे धीरे खुद में धूमिल करते है


मैं बैठी हूं सरहद के इस ओर

तुम्हारी यादों के कुछ सूखे पत्ते बटोर

हर पत्ते में लिखीं है मैंने तुमसे जुड़ी कई बातें

तुम्हारे साथ रहने की कसमें

और तुम्हारे साथ गुजरी वो रातें!


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