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Subodh Upadhyay

Drama

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Subodh Upadhyay

Drama

मैं अभी अभी

मैं अभी अभी

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मैं अभी अभी पहाड़ से होकर आया हूं,

मैं गाँव के नौले का पानी पीकर आया हूं,


मैंने देखा हिसालु काफल के पेड़ लदे हुए हैं,

मैंने देखा जंगल में बुरांस के फूल खिले हुए हैं,


देखा कि पहाड़ में चारों तरफ आग लगी हुयी थी,

मेरी कलम कुछ शब्द पिरोने कराह उठी थी,


लपटें दावाग्नि की कैसे लपक रहे थे,

मेरे पहाड़ के जंगल कैसे धधक रहे थे,


बुत बना सा प्रशासन अब तलक सोया है,

इनकी अनदेखी में हमने बहुत कुछ खोया है,


हमको खुद ही फिर से माधोसिंह, गौरादेवी बनना होगा,

मिलकर फिर से उजड़ते पहाड़ को संवारना होगा,


उपजाना होगा हर बाग, खेत,खलिहानों को,

आग से बचाना होगा जंगल, जीव और वृक्षों को.


पलायन से दूर हुए कुछ जनों को एकत्रित करना होगा,

नदी ,नौले और धारे के जल को संग्रहित करना होगा,


आग के दंश से पहाड़ मे कल शायद कोई वन ना हो,

आज ना सम्भले अगर तो शायद कल हम ना हो,


माटी का कर्ज चुकाने को हर वो किरदार निभाना होगा,

हर उस बंजर धरती पर बांज और देवदार उगाना होगा,


कठिन परीक्षा है सभी को पास कराना होगा,

पहाड़ के रक्षक जिन्दा है विश्वास कराना होगा।


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