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Arti Pandey

Abstract

4.5  

Arti Pandey

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मै खुद को संभाल पाती हूँ

मै खुद को संभाल पाती हूँ

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यूँ ही नहीं मै खुद को संभाल पाती हूँ,

ठोकर खाकर ही खुद को जान पाती हूँ |

है रहमत खुदा की ,दुआ है मेरी माँ की ,

यूँ ही नहीं इक समन्दर मन के अंदर समेट पाती हूँ |


किसी से किसी की न शिकायत करूं में ,

है छोटी उमर बस रियायत करूं में ,

न कुछ पाने की इक्छा न खोने का डर,

है दिल में मिठास न है कोई ज़हर,

बांटकर सबमें खुशियां इक सुकून पाती हूँ |

यूँ ही नहीं मै खुद को संभाल पाती हूँ|


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