मानवता
मानवता
ईश्वर कैसे सह लेे एक जीव की इंद्रिय तृप्ति के लिए,
अन्य जीवों का अंत
था प्रश्न सम्पूर्ण प्राणियों के संरक्षण का,
तभी हुआ सृजन मनुष्यो का,
दी जिनको सोचने समझने की क्षमता,
विवेक से निर्णय लेने का अधिकार,
जिससे कर सके वो हर जीवन का
सम्मान रखके दयाभाव हर जीव के प्रति।
अपने विवेक , बुद्धि-बल से कर सके सभी प्राणियों का रक्षण ,
क्या पता था बनेगा यही मानव प्रकृति का भक्षक।
था जिसको बनाया सर्वश्रेष्ठ सभी प्राणियों में,
दी स्वतंत्रता जिसको अपना पथ स्वयं चयन करने की,
आखिर पढ़ ही गया मनुष्य लालच और इंद्रियतृप्ती के चक्कर में,
समझ बैठा अपने आप को सर्वश्रेष्ठ , और मगन हो गया अपनी आसक्ति में..
भूल बैठा सभी जीव अंश है उन्हीं परमात्मा के,
दया एवं करुणा इसीलिए समान है सबके लिए उनके हृदय में,
कैसे शांत रहे ईश्वर एक जीव को दूसरे का भोग बनते देख
कभी तो समझाना ही था इस मानव को मानवता का असल उद्देश्य।।