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V. Aaradhyaa

Classics

4.5  

V. Aaradhyaa

Classics

मानिनी माते को नमन

मानिनी माते को नमन

2 mins
312


प्रभातकाल सूर्य के समान दिव्यता लिये।

ललाट अर्धचन्द्र है विशाल भव्यता लिये।।

अनादि हो अदम्य हो प्रणम्य मातु मानिनी।

अमर्ष चित्त के लिए अलभ्य मातु भामिनी।।


सुता-सपूत को सदैव सर्वलब्ध अम्बिके।

दिखा रही कुमार्ग को सुमार्ग आप चंडिके।।

वही समीप है जिसे असीम धैर्य प्राप्त है।

विमुग्ध विश्व हो रहा प्रभूत प्रेम व्याप्त है।।


अशोभनीय कृत्य का प्रभाव क्षीण जो करे।

परोक्ष रूप से प्रकाश को प्रकीर्ण जो करे।।

पुकार भक्त की सुने प्रशस्त पंथ जो करे।

अमर्ष में विदग्ध शत्रु को विदीर्ण जो करे।।


वही सुधामयी तुम्ही अथाह शांति शालिनी।

निशेश भानु सिंधु गंग भूमि सृष्टि व्यापिनी।।

कदापि शीश भक्त के झुके न क्षोभ से रहें।

सभी सुखी सदैव स्वस्थ हास से भरे रहें।।


अशेष रूप सुन्दरी सुवर्ण हे सुलोचने।

करो कृपा दयालु माँ कराल काल सामने।।

सुनो पुकार आर्त कंठ की विषाद हारिणी।

प्रणाम शोभने तुम्ही शुभा स्वरूप धारिणी।।


अनन्त तेज शस्त्र-अस्त्र शंख-चक्र धारिणी।

नमामि मातु कालिका नमामि ब्रह्मचारिणी।।

महातपा महाबला अपार रूप स्वामिनी।

पुकारते निहारते सदैव भक्त भाविनी।।


निशुम्भ-शुम्भ चण्ड-मुण्ड रक्तबीज मर्दिनी।।

प्रणाम चन्द्रघंट मातु शैलजा सुनंदिनी।

असंख्य क्रूर ध्रूम आदि सर्व दैत्य घातिनी।

समूल कष्ट आपदा सदैव माँ विनाशिनी।।


बसी हुई निसर्ग में तुम्ही असीम कान्ति ले।

महामयी सुधामयी अथाह सौम्य शान्ति ले।।

उमा रमा स्वरूपिणी शुभा-प्रभा प्रदायिनी।

विराजती रहो कृपालु मातु सिंहवाहिनी।।


समस्त रोग-शोक काम-क्रोध,पाप नाशिनी।

अपार हर्ष-मोद दे प्रसाद में कपालिनी।।

त्रिशूल शंख चक्र हस्त में कृपाण धारिणी।

सदैव भक्त के सभी विकार ताप हारिणी।।


प्रभाव बुद्धि तेज का बखान देव भी करें।

महाबली महारथी कटाक्ष देख के डरें।।

तुम्ही दयालु विश्वमोहिनी महासरस्वती।

नमामि सर्वशक्तिरूपिणी जया प्रभावती।।


अतीव कान्तियुक्त भव्य लालिमा ललाट की।

समर्थ कौन जो करे सराहना विराट की।।

विचारणीय वेदिका विभूति वन्दनीय हो।

सनाथ सृष्टि-सेतु मातु पूज्य श्लाघनीय हो।।


अधर्म के अधीन जो मदान्ध प्राण हो गए।

विलास में निमग्न हो मनीष मंद हो गए।।

पड़े हुए अधीर चित्त स्वार्थ अंहकार में।

दिखा रही तुम्ही उन्हें प्रकाश अंधकार में।।


मनुष्य जीव-जंतु में बसी त्रिलोक वासिनी।

विलोक प्रेमभाव से प्रसन्न हो सुहासिनी।।

महेश शेष विष्णु आदि पूजते सदा तुम्हे।

प्रणाम मातु अम्बिके प्रणाम कोटिशः तुम्हे।।


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