मानें सुख-दुख एक समान
मानें सुख-दुख एक समान


हम सब ही सुख चाहते,
दुख न किसी की चाह।
सुख में करते हैं न चिंता,
और दुख में भरते आह।
कम से कम श्रम करना हो,
लाभ अधिकतम होती आशा।
लाभ घटे या बढ़े जरा श्रम ,
होता ग़म और होती निराशा।
यह होता पश्चाताप भी मन में,
क्यों चुना ली यह ग़लत सी राह।
हम सब ही सुख चाहते,
दुख न किसी की चाह।
सुख में करते हैं न चिंता,
और दुख में भरते आह।
स्वार्थ भाव के वश आते,
मात्र निज हित के विचार।
परहित हो किसी की क्षति,
प्रा
य: हम यह देते हैं बिसार।
असफलता भयभीत करती,
सदा ही है सफलता की चाह।
हम सब ही सुख चाहते,
दुख न किसी की चाह।
सुख में करते हैं न चिंता,
और दुख में भरते आह।
विविध रंगों से सुसज्जित है,
यह हमारा सारा ही संसार।
लाभ-हानि दुख-सुख संग-संग,
हैं जीवन में विविध चढ़ाव-उतार।
खुशियों के मनमोहक रंग संग,
स्वीकारें हम ग़म का रंग स्याह।
हम सब ही सुख चाहते,
दुख न किसी की चाह।
सुख में करते हैं न चिंता,
और दुख में भरते आह।