मां
मां
नभ-धरा पवन बता दें,
या कोई जन बता दे,
माँ सा ममता कहाँ है,
कोई इतना यह बता दे,
उसकी आंचल सा मिलता चैन कहाँ ,
मिलता स्वर्ग सा सुख, ओ गोद कहाँ,
कमल सदृश्य, ओ तन कहाँ ,
कोई इतना ये बता दे,
ज्ञानी उस सा जो पाठ पढ़ाएं,
खींचे कान तनिक प्यार से तो,
स्वयं आंख उसकी भर आए,
ढूंढूँ माँ सा गुरु तो, कहाँ कोई पायें,
हो कोई तो बताएं,
हृदय विशाल इतना, जिसमें जग समा जाएं,
क्या सुख क्या दुःख, सम हो मुस्काय,
जिसके चरणों में चारों धाम समाएं,
है कोई व्यक्तित्व सदृश्य,
कोई बताए,
सामर्थ्य ऐसी ईश को जन्म दे,
जन्म राम-कृष्ण को धारा पर लाए,
धर्म-मर्यादा की मान बढ़ाएं,
है कोई माँ सा समर्थवान, नाम बताए,
कृति स्वयं विधाता की फिर,
गुण इतने की स्वयं समझ न पाएं,
कभी कौशल्या नयन से समुद्र बहाएं,
आदि शक्ति सृष्टि बचाए,
शक्ति इतनी जगत का बोझ उठाएं,
आदि-अंत तुझ से होकर जीवन, तुझ में लीन हो जाएं
बहु-भांति करूं बंदना तुम्हारी,
हे जननी! माँ, यशोधरा,
अपनी ममतामयी छांव बनाए रखना,
मिले हर जन्म बनूँ सूत तुम्हारा, हो पुनः भारत देश में आना।।