माँ
माँ
बड़ी-बड़ी हिरनी सी आँखे
रखें सब पर ध्यान,
लम्बे काले बाल घनेरे
सावन की घटा समान।
माथे पर सुन्दर सी बिन्दी,
ज्युं नभ पर चमके चाँद
हाथों में चूड़ी की खनखन,
घर को देती जान।
कमर पे कसके पल्लू दिनभर,
जाने क्या-क्या करती रहती
कभी न हारे, कभी न थकती,
दुनिया उसको "माँ" है कहती।
हाथों में उसके जो जादू,
कहीं और नही मिल सकता
मूंग, मसूर, कद्दू या करेला
कुछ भी "स्वादिष्ट"है बन सकता।
थक जाओ जब भाग-दौड़ से
मीठी लोरी वह सुनाती है
कहीं अगर कुछ गलत दिखे तो,
"दुर्गा" भी बन जाती है।
माँ का हाथ जो सर पे है तो
कैसा जोखिम और क्या खतरा
चाहे कष्ट कितना भी बड़ा हो
तुझे तनिक नही छू सकता।
कहीं कोई आ जाये मुश्किल,
झट से आसां कर देती है
बच्चों की हर एक बला
अपने ऊपर ले लेती है।
ये दुनिया उसको माँ कहती है।
क्या-क्या लिक्खूं, कितना लिक्खूं
ये अक्षर कम पड़ जायेंगे
पर मेरी माँ की खूबियों का
वर्णन न कर पायेंगे।
