मां
मां
पत्थर हो कर पहले नींव जमाई जाती है,
माँ बाद में बनती है, पहले जां दांव पर लगायी जाती है।
खुद को सब्र का बाँध कहने वालों,
हिम्मत तो पैदाइश मे दिखाई जाती है।
माँ के करतब से ख़ुदा भी अनजान है,
यूँ ही नहीं पैरों की धूल सर पर लगायी जाती है।
हादसों से कभी ताल्लुक होने नहीं दिया,
मेरे पहुंचने से पहले माँ की परछाई आ जाती है।
मंदिर, तीर्थ की जिरायत को क्यूँ भटकना,
ख़ुदा की नेकी भी माँ मे समायी जाती है।
लहू अपना देकर साँसे अता करती है जान मे,
वक़्त आने पर माँ पलकों पर बैठाई जाती है।
छत की क़ीमत का अंदाजा तब होगा बशर,
माँ चली जाये और पीछे तन्हाई रह जाती है।
बूढे हाथ भी तेरी खुशी के लिए उठेंगे "अजीत",
माँ है वो, माँ की भलाई कहा जाती है।