माँ
माँ


जूझती है, कराहती है,
फिर भी मुस्कान मुख पे सजाती है।
प्यारी सी वो माँ,
जिसकी ममता की कुछ अलग कहानी है।
प्यारे से आँचल की छांव में,
जहाँ हर नई कली मुस्काती है।
जिसके संस्कारो के आंगन में ममता मुस्काती है।
प्यारी सी वो माँ,
नित नई प्रेरणा की
कहानी सुनाती है।
जिसके मुख पे
आशा की किरण गुनगुनाती है।
प्यारी सी माँ
गीत नया नित गाती है।
कभी भी न थकती है माँ,
कर्म भाव सिखाती है।
चाहे जीवन की चढ़ती सुबह हो,या ढलती शाम हो,
माँ सदा कुछ नया पाठ सिखाती है।
माँ से व्यापक कुछ नही,
तभी तो वो जगजननी कहलाती है।
दुष्टो को सबक सिखाने
कभी महाकाली बन जाती है।
कभी दुखिया है।
यह है एक स्त्री का रूप
जो जीवन की हर शाम में,
गीत नया ही गाती है।
हर पल सिखाती है,
तभी प्रथम गुरु के रूप में
पूज्यनीय हो जाती है।
नारी के हर रूप में है माँ,
तभी कन्या रूप में भी
पूजी जाती है।