माँ
माँ
ईश्वर की
सर्वश्रेष्ठ कृति
माँ की महिमा
अपरम्पार।
तन मन धन
सब न्योछावर करती
करती बच्चों से
अनन्त प्यार
सूखे में
बच्चे को सुलाती।
गीले में सो जाती
हर बार
उंगली पकड़कर
चलना सिखाती
अपनी गोदी में
खूब खिलाती।
जब भी कभी
मुसीबत आती
माँ हमेशा
ढाँढ़स बँधाती
माँ तो होती
है माँ।
माँ का कर्ज़
नहीं कोई
चुका पाता है
तभी तो,
चोट लगने पर
ईश्वर के नाम
से पहले
माँ का नाम ही
जुबाँ पर
आता है।
