माँ
माँ
शाम हुई तो 'माँ' लौट आई
थकी-थकी कुछ अनमनी
दिन भर उड़ती फिरी थी वो
भूखी प्यासी बेहाल
जुटा पायी थी तो बस चार दाने
यूं मुझे भूख न थी इतनी
मगर खोल दी चोंच मैंने अपनी
एक के बाद एक उसने डाल दिए
मेरे मुंह में वो चार दाने
माँ आज फिर भूखे पेट सोएगी
समेट कर मुझे अपने थके पंखों में।
माँ देख तू मुझे इतना प्यार न कर
तू ना मानी तो कल फिर यूं होगा
पंख निकलेंगे मेरे
और दूर मैं उड़ जाऊंगा
तू हो जाएगी भीड़ में तन्हा
मैं भी कहां चैन से रह पाऊँगा
सोच ले कहीं तेरे इस प्यार के बाद
हमें किसी हाल भी सुकून न मिले
इधर तू तड़पे उधर तरसूँ फिर मैं
हर प्यार को नापूँ तुझसे !