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"माँ" तुम कितनी झूठ बोलती हो

"माँ" तुम कितनी झूठ बोलती हो

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यूँ छोटी-छोटी बातों में 

जो तुम ये कहती थी,

तुम मर जाते तो अच्छा होता। 

कल जाना मैंने अस्पताल में 

बिस्तर पे पड़े-पड़े कि,

"माँ" तुम कितनी झूठ बोलती हो। 

 

बहुत व्यस्त है लाल मेरा 

सोंचकर अपनी दवाइयाँ लेने,

अक्सर अकेले ही निकल जाती थी। 

गैरों के सहारे उस रोज़ 

सीढियाँ चढ़ते देखा, तब जाना

"माँ" तुम कितनी झूठ बोलती हो। 

 

सौ साल जियूँगी ये कहकर 

तुम हौसला बढाती रही,

अपना दर्द छुपाके मुझको हँसाती रही। 

महीने भर की मोहलत दी है 

डॉक्टर ने अब तो जाना कि,

"माँ" तुम कितनी झूठ बोलती हो। 

 


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