माँ सी भाषा
माँ सी भाषा
दिन भर शालीन कपड़े पहन, शाम में ढीले कपड़े पहन आराम पाना
रोज सुबह नकली मुस्कान ओढ़े, शाम में खुल के खिलखिलाना
रोज सुबह पक्षियों का घोंसले से निकल, फिर शाम में अपनी माँ के आंचल में आकर छुप जाना
दिखावे की दुनिया में रह कर, फिर अकेले में ख़ुद में गुम हो जाना
वैसे ही हिन्दी मुझे लगती है,
सारी भाषाओं के साथ दिन भर औपचारिक रिश्ते निभा
लौट आती हूँ हिन्दी में जब मैं
हिन्दी मुझे मेरे घर सी लगती है।