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Nandini Bodas

Others

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Nandini Bodas

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पोस्टकार्ड

पोस्टकार्ड

2 mins
370



पीले रंग का कागज का एक टुकड़ा, सैर कर लेता था अकेला

छोटी सी जगह में भी भावनओं का समंदर समा लेता अपने अंदर

कितनों के मन की बातें, वो बेटियों के अपने मायके को लिखे संदेशे

गम की सांत्वना हो या खुशी का न्योता 

मोबाइल का न था जमाना, अपने सुंदर अक्षरों का था रौब जमाना 

प्यारे मोती से अक्षरों से लिखी भावनाओं की पाती

समा जाती थी एक कागज़ के टुकड़े में

सीखा था जीवन का पाठ उस कागज़ के टुकड़े में, अपने से दूर बैठे अपने अपनों को चिट्ठी लिख कर

कैसे भेजी जाती हैं भवनाएं सूचना के तौर पर

बच्चों का वो प्यार भरा अफ़साना या दादी, नानी की आशीर्वादों से भरी चिट्ठी

या हो मांओं का अपनी बेटियों को शादी के बाद हाल चाल जानने पत्र लिखना,

वो प्यारी बातों को सदियों तक प्यारी यादें बना के सँजोना

उस पोस्टकार्ड को सालों बाद यूँ देखना जैसे जीवन का असली खज़ाना तो यंही है।

आज वो पोस्टकार्ड नही लिखे जाते, न ही यादें अब कागज में समेटी जाती हैं।

क्योंकि वो पोस्टकार्ड के जमाने अब बीते हुए जमाने कहलाते हैं।

   


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