मां की महिमा
मां की महिमा
तेरी महिमा है अपरम्पार
जगत को कैसे बतलाऊं
तू कैसे रखती सबका ध्यान
जगत को कैसे बतलाऊं।
यह मायावी संसार
न कोई है इसका कोई आधार
कलयुग के इस सागर की
तू ही नौका और पतवार
जगत को कैसे बतलाऊं।
मानव का चोला पहने
दानव ने पैर पसारे
आंखों में लिए छलावा
वाणी में अमृत घोलें।
तब तू ही करायें सच का ज्ञान,
जगत को कैसे बतलाये।
तू एक नहीं सबकी है मैया
जो तुझको माने, वो ही जाने
तू करती है सबका कल्याण
जगत को कैसे बतलाऊं ।
संसार छोड़ कर जब कोई
जाता है उस धाम
तब तेरे ही नाम का ,बनता एक जहाज
जगत को कैसे बतलाऊं।
