मेरा प्रश्न
मेरा प्रश्न
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पीले कपडे लंबी दाढ़ी,
रौब छलकता चेहरा था।
ह्दय में बहे ज्ञान का सागर,
फिर भी कुछ न कहना था।
कुछ शक्ति का,कुछ भक्ति का
कुछ सौहरत का,कुछ दौलत का।
हृदय की चौखट पर,
अभियान का पहरा था।
पूछ लिया हमने गुुुरुवर से,
जीवन क्या होता है।
भडक गए और बोले
सुनो मेरी बातों को।
हूँ तो मैं ज्ञान का सागर,
पर सस्तेे में न लुुटाता हूँ।
यह संसार हैैै बजार की मंडी,
यहां हर कोई व्यापारी है।
बेेच रहे यहां माल सब अपना
सबकी अपनी-अपनी कीमत है।
चुका सके जो कीमत इसकी,
बही खरीद पाता है।
समझ गई मैं भाव उनके,
यहाँ कोई न जीवन का व्याख्याता है।
चकाचौंध की इस भीड में,
लगा नटवरों का तांंता है।
