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Anjneet Nijjar

Abstract

4.5  

Anjneet Nijjar

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माँ कहती है

माँ कहती है

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माँ कहती है,

मेरी माँ अक्सर कहती है,

अपना ख़्याल रखना,

अरे! जीवन के चालीस बसंत देख चुकी हूँ मैं,

माँ फिर भी दोहराती है,

अपना ख़्याल रखना,

माँ को मेरे सफ़ेद बाल दिखाई नही देते शायद,

हाँ, मुझे लगता है नज़र कमज़ोर हो गयी है मेरी माँ की,

जब भी मायके जाती हूँ,

माँ को कमज़ोर सी लगती हूँ मैं,

वज़न घाटने के सौ उपक्रम करने के बाद भी,

मेरा वज़न कम नही होता,

पर मेरी माँ को कमजोर नज़र आती हूँ मैं,

हाँ, मुझे लगता है नज़र कमज़ोर हो गयी है मेरी माँ की,

जाने-अनजाने मेरी dietician, मेरी नर्स भी बन जाती है माँ,

यह खाना इससे हड्डियाँ मज़बूत होंगी,

वो मत खाना तुझे तकलीफ़ होगी,

बाल कैसे कर रखे हैं?

अरे! तेल क्यूँ नही लगाती, सारा दिन पढ़ती है,

इसीलिए तू चश्मा है लगाती,

आराम क्यूँ नही करती,

इतना काम करती है, कर-कर है थक जाती,

जानती है माँ कि मेरे पास दो-तीन है कामगार,

पर पता नही माँ को मैं ही क्यूँ थकती नज़र आती,

हाँ, मुझे लगता है नज़र कमज़ोर हो गयी है मेरी माँ की….


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