मां,बेटी और नातिन
मां,बेटी और नातिन
बहुत पुरानी एल्बम के
पन्ने उलटते पलटते
फिर वही फोटो
अचानक हाथ लगी
जो एक बार बीस वर्ष
पूर्व लगी थी।
तब ऐसा लगा था
फोटो मेरी नहीं
मेरी बेटी की थी।
आज फिर वही फोटो
हाथ लग गई
फोटो को शीशे के सामने रखा
बीस वर्ष की युवती अल्हड़,
जवान, सुन्दर,सलोनी।
स्वयं का अक्स भी देखा
वही नैन नक्श
वही चौड़ा माथा
वही बड़ी काली आंखें
गुलाबी गाल
तीखी नाक।
फर्क इतना था
बाल सफेद हो गए थे
आंखों के नीचे काले दायरे थे
माथे पर झुर्रियां
गाल कुम्लाह गए थे
देह ढीली पड़ गई थी।
ऐसा लगा
फोटो मेरी नहीं
मेरी नातिन की थी।
मां- बेटी- नातिन का सफर
एक लंबी यात्रा
सालों साल की यात्रा।
लग रहा था
नातिन मेरा ही
स्वरूप ले कर पैदा हुई थी।
स्वरूप ही नहीं
मैं देखती थी
स्वभाव भी मेरे जैसा
लेकर पैदा हुई है
वही आदतें,वही बोल
पढ़ने में तेज़
वही पसन्द, वही नापसंद
वही चाल,वही आवाज़।
जीवन की धारा
ऐसे ही बहती रहती है।
