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Antariksha Saha

Abstract

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Antariksha Saha

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मालिक

मालिक

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मालिक मेरे तू मुझे शरण दे

बहुत थक चुका हू मै

अब ना ढोया जाए

ये बैरी दुनिया

लब पर आए ना कोई नाम

बस तू ही तू है हर शाम

लोग मीठे बस स्वार्थ से

हम जुड़े बस परमार्थ से

कौन अपने कौन पराए

समझ ना पाउँ

मन की यह पीरा कोई नहीं समझा

इस चमक धमक मे रोज़ नया चेहरा

स्वार्थ की दुनिया मे बस तू ही अपना

लड़ पछताऊ किस को बताऊ यह क्लेश

ए परम पिता त्वम् शरणनम

मुक्त कर इस माया से जन्म! 


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