लोक व्यहवार नेग रिवाज
लोक व्यहवार नेग रिवाज
परम्परा पहचान की
मोहताज नहीं है
क्योंकि माटी की खुशबू
लोक व्यहवार की जननी है
लोगों का मिलना
समाजिकता कौशल है
नेग रिवाज
अद्वितीय छाप हमारी है
पर आज जो दशा
आधुनिकता की दिवानी है
कल उसकी न कोई
अस्तित्व निभानी है
हो जाइये सचेत
इस भौतिकतावादी युग में
न व्यहवार न रिवाज
केवल आर्थिकता ही लुभानी है
प्रेम बना आडम्बर
वासना के खातिर
वर्तमान समाज की
बड़ी कड़वी कहानी है।
