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Haider Karim

Abstract Tragedy

5.0  

Haider Karim

Abstract Tragedy

लोग

लोग

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रस्मों से बंधे लोग रिवाजों से बंधे लोग

बस नाम के जिंदा है ज़हनों से मारे लोग,

दौलत कमाई है हाथों पे कालक लगाई है

बड़े साफ़ हैं सुथरे हैं मिट्टी से बने लोग,

होंठो पे प्यार और दिल में बुग्ज़ रखते है

शरीफ़ाना है बहुत नफ़रत से मारे लोग,

हाथ सुर्ख खून में फिर भी सफेदपोश है

ज़बान के मीठे है सियासत से भरे लोग,

वाज़े हैं हर एक बात अगर बात को समझो

आंखों के अंधे हैं ये ज़हालत से भरे लोग।


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