लमहे जिंदगी के
लमहे जिंदगी के
लमहे जिंदगी के, कुछ इस तरह से गुजरे
शिकवे- गिले भी चाह कर, न कर सके किसी से
सुख - दुख है धूप - छांव जिंदगी की रह गुजर में
हंसते- मुस्कराते पल, कुछ इस तरह से गुजरे
जो भी मिला उसे, अपना नसीब माना
रहमत खुदा की पा कर, हर लम्हा यूं गुजारा
खुशियों को बांट कर, गम को गले लगाया
आशाओं की कली से, आशियाना महकाया
मतलब के इस जहां में, कोई मीत जब न पाया
कागज- कलम को अपना, सच्चा साथी बनाया
लफ्जों के कारवां ने, जख्मों पर मरहम लगाया
कुछ इस तरह से खुद को जीने लायक बनाया।
