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Vipin Kumar 'Prakrat'

Inspirational

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Vipin Kumar 'Prakrat'

Inspirational

लक्ष्य की प्रेरणा

लक्ष्य की प्रेरणा

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जीवन है एक कर्म साधना ,

अब जीवन में हुआ सयाना।

कुछ तो उपजी चाह हमारी ,

कुछ नूतन करने की बारी।।


राह बनाकर चल दे अब तू ,

सोच समझ कर बढ़ना अब तू।

राहों में भटकाव बहुत से ,

मन में हैं बदलाव बहुत से।।


इस अनजान, अनभिज्ञ जगत में ,

विपत्तियां नयी, चुनौतियां कई।

फिर भी लगे रो तुम राही,

राहें सही गलत न कुछ भी।।


उषा जाग उठी पूरब में ,

गुंजायन करते खग नभ में।

अब जाग गयी ये वसुधा सारी 

अब तुम भी जागो ओ हमराही।।


लहरें उठीं ज्वार बन मन में ,

जीव जंतु खग चहके वन में।

लक्ष्य का मन में डालो डेरा ,

फिर ये सकल संसार हमारा।।


सागर सी गहराई लेकर ,

स्थिर विशाल हिमालय बनकर।

भोर किरण का सूरज जैसा ,

अर्धरात्रि का चंद्र तिमिर सा ।।


तिमिरमयी निशा में जुगनू जैसा ,

पतझड़ बाद बसंत भोर सा।

इस सम्पूर्ण सृष्टि सा चेतन ,

सुगंध बिखेरती कुसम सा मन।।


चन्दन सा खुद से विकट प्रेम ,

काले मेघ सा असीम क्षेम।

चंचल किरणों सी व्याकुलता ,

जल चक्र में वृष्टि सी नवीनता।।


अब सोचा क्या सोचा जाना ,

गुजरा वक्त न फिर है आना।

अब आयी करनी की बारी ,

कदम उठा, बढ़ने की तैयारी।।


बढ़ चल एक असीमित जग में ,

उड़ चल एक अपरिमित जग में।

निज तेज से भर तू रोम रोम

सहज न मिलता अमर सोम।।


लक्ष्य सामने , राह सामने ,

कृष्ण सामने , पार्थ सामने।

गीता का उपदेश सामने ,

कर्मों का परमार्थ सामने।।


कर्तव्यबोध हित कुछ है पाना ,

अब मुझको बढ़ते है जाना।

जीवन है एक कर्म साधना ,

श्रम उद्यम कर मर्म जानना।


 



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