लक्ष्य की प्रेरणा
लक्ष्य की प्रेरणा
जीवन है एक कर्म साधना ,
अब जीवन में हुआ सयाना।
कुछ तो उपजी चाह हमारी ,
कुछ नूतन करने की बारी।।
राह बनाकर चल दे अब तू ,
सोच समझ कर बढ़ना अब तू।
राहों में भटकाव बहुत से ,
मन में हैं बदलाव बहुत से।।
इस अनजान, अनभिज्ञ जगत में ,
विपत्तियां नयी, चुनौतियां कई।
फिर भी लगे रो तुम राही,
राहें सही गलत न कुछ भी।।
उषा जाग उठी पूरब में ,
गुंजायन करते खग नभ में।
अब जाग गयी ये वसुधा सारी
अब तुम भी जागो ओ हमराही।।
लहरें उठीं ज्वार बन मन में ,
जीव जंतु खग चहके वन में।
लक्ष्य का मन में डालो डेरा ,
फिर ये सकल संसार हमारा।।
सागर सी गहराई लेकर ,
स्थिर विशाल हिमालय बनकर।
भोर किरण का सूरज जैसा ,
अर्धरात्रि का चंद्र तिमिर सा ।।
तिमिरमयी निशा में जुगनू जैसा ,
पतझड़ बाद बसंत भोर सा।
इस सम्पूर्ण सृष्टि सा चेतन ,
सुगंध बिखेरती कुसम सा मन।।
चन्दन सा खुद से विकट प्रेम ,
काले मेघ सा असीम क्षेम।
चंचल किरणों सी व्याकुलता ,
जल चक्र में वृष्टि सी नवीनता।।
अब सोचा क्या सोचा जाना ,
गुजरा वक्त न फिर है आना।
अब आयी करनी की बारी ,
कदम उठा, बढ़ने की तैयारी।।
बढ़ चल एक असीमित जग में ,
उड़ चल एक अपरिमित जग में।
निज तेज से भर तू रोम रोम
सहज न मिलता अमर सोम।।
लक्ष्य सामने , राह सामने ,
कृष्ण सामने , पार्थ सामने।
गीता का उपदेश सामने ,
कर्मों का परमार्थ सामने।।
कर्तव्यबोध हित कुछ है पाना ,
अब मुझको बढ़ते है जाना।
जीवन है एक कर्म साधना ,
श्रम उद्यम कर मर्म जानना।
