लकीरें
लकीरें
लकीरें बड़ी खींच दो
दूसरे की छोटी
करनी हों लकीरें तो
इसी जुगत में
हथेलियों की लकीरों को
ताकते हुये
सोचती रही
उस लकीर के बारे में
जो मेरी हथेली में
छोटी थी,
तेरी लकीर के आगे
लकीरें नदी की धार सी हैं
समानांतर बहना चाहती हैं
पर....
यहाँ खुश थी मैं !
जल्दी ही पहुँच जाऊँगी
उस पार ..!
कि ..तेरा इंतजार मुझे
अब भी ...सुहाता है
तब भी ....सुहाएगा !
ख्वाहिशमंद हूँ
सागर सरीखा तू
अपनी बड़ी लकीर में
इंतज़ार समेट कर....
मुझसे मिलने जल्दी आये।
तड़प है
तेरे क़रीब पहुँचने की
वक़्त मुठ्ठी से ....
यूँ ही फिसल रहा है...
और मैं ....
चुकती जा रही हूँ
उस ....नदी की तरह
जिसकी...
जीवन की लकीरें
हम सबने मिल कर
छोटी कर दीं हैं !
समुद्र से जल्दी मिलने को
कितना तड़पती होगी न नदी ...

