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Poonam Bhargava

Romance

3  

Poonam Bhargava

Romance

लकीरें

लकीरें

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249


लकीरें बड़ी खींच दो

दूसरे की छोटी

करनी हों लकीरें तो


इसी जुगत में

हथेलियों की लकीरों को

ताकते हुये

सोचती रही

उस लकीर के बारे में

जो मेरी हथेली में

छोटी थी,

तेरी लकीर के आगे

लकीरें नदी की धार सी हैं

समानांतर बहना चाहती हैं

पर....

यहाँ खुश थी मैं !

जल्दी ही पहुँच जाऊँगी

उस पार ..!


कि ..तेरा इंतजार मुझे

अब भी ...सुहाता है

तब भी ....सुहाएगा !


ख्वाहिशमंद हूँ

सागर सरीखा तू

अपनी बड़ी लकीर में

इंतज़ार समेट कर....

मुझसे मिलने जल्दी आये।


तड़प है

तेरे क़रीब पहुँचने की

वक़्त मुठ्ठी से ....

यूँ ही फिसल रहा है...

और मैं ....

चुकती जा रही हूँ

उस ....नदी की तरह

जिसकी...

जीवन की लकीरें

हम सबने मिल कर

छोटी कर दीं हैं !


समुद्र से जल्दी मिलने को

कितना तड़पती होगी न नदी ...


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