STORYMIRROR

Poonam Bhargava

Abstract

4  

Poonam Bhargava

Abstract

लौटना

लौटना

1 min
398

दिखाई नहीं देगा 

लेकिन वो 

एक दिन लौट जाएगी    

तुम नहीं जान पाओगे 


समुंदर होने का गुरुर   

तुम्हारी आँखों में

अट्टहास कर रहा है  

ये मैंने उस वक़्त जाना जब तुम 

उगते सूरज को दिखा कर बोले 

ये देखो

मुझसे ही उगता है और

मुझमें ही डूबेगा भी    


मैं जानती हूँ कि 

तुम नहीं जानते 

मेरी नज़र अब तुम को भेद कर

उस पार की तबाही के

मंज़र का तर्जुमा करती है


तमाम घटनाओं और

दुर्घटनाओं के वजूद की धार लिए   

अदम्य साहस से भरी मैं 

जब हज़ारों वर्षों से तुमसे

मिलनेचलती चली आ रही हूँ तो

एक दिन पलट कर भी चल दूँगी 


देखो !

बिल्कुल भी अच्छा नहीं 

कलयुग का भी अंत कर सकता है

नदी का उल्टे पाँव लौटना !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract