लावणी छंद....काव्य कुसुम बिखराएंगे
लावणी छंद....काव्य कुसुम बिखराएंगे


अंतर्मन में दीप जलाकर,
काव्य कुसुम बिखराऍंगे ।
भूतकाल से सीख लिए अब,
गीत खुशी के गाऍंगे ।।
पथिक वही जो चलता पथ पर,
जीवन नाव चलाओ रे ।
बिखरे रिश्ते जोड़-जोड़ कर,
टूटा महल बनाओ रे ।।
मानवता का कवच चढ़ा हम,
हारा समय जिताऍंगे ।
भूतकाल से सीख लिए अब,
गीत खुशी के गाऍंगे ।।
जीत उसे ही मिलता रण में,
अविचल हो जो डटा रहे ।
बूॅंद-बूॅंद में जीत उसी की,
बादल जो घन-घटा रहे ।।
अस्थिरता में ठहराव मिला,
शांति सुधा बरसाऍंग
े ।
भूतकाल से सीख लिए अब,
गीत खुशी के गाऍंगे ।।
थककर हारा मरता पल-पल,
मन को नित समझाओ रे ।
मानस हंसों को मार्ग दिखा,
ममता सम बहलाओ रे ।।
मलयज मन-मन पुष्पित करके
उजड़ा बाग सजाऍंगे ।।
भूतकाल से सीख लिए अब,
गीत खुशी के गाऍंगे ।।
वेद पुराणों की भाषा यह,
निश्छल मन को जीत मिले ।
साधु संत सब कह गए यहॉं,
प्रेमिल हिय मनमीत मिले ।।
ढूॅंढें खुद को खुद में रहकर,
मर कर फिर मुस्काऍंगे ।
भूतकाल से सीख लिए अब,
गीत खुशी के गाऍंगे ।।