लाल सुर्ख़ होंठ..!
लाल सुर्ख़ होंठ..!
अपने कहने वालों ने ही अपने मकान में आग लगाये हैं
दिल टुटा तो समझ आया की अपनों से अच्छे तो पराये हैं
जो मेरे क़दम रोक रहे हैं,
काले बादल या उसकी ज़ुल्फ़ो के साये हैं
वफ़ा-वफ़ा की चाहत रखते थे जिससे,
आज वो सभी बेवफ़ाये हैं
हमें अज़नबी कहने वाले आज हमारे लिए कर रहे मिन्नतें, दुआएं हैं
दिल में नफ़रत भले ही हो पर पलकों में ख़्वाब सजाये हैं
आज भी दिल पे ख़ंजर चुभाती हैं जो उनके लाल सुर्ख़ होंठ,
नीली सी आँखें, झटकती ज़ुल्फ़ें, गाल का काला तिल,
बलखाती कमर,तिरछी नज़र,शर्मीली अदाये हैं
अपने कहने वालों ने ही अपने मकान में आग लगाये हैं
दिल टूटा तो समझ आया की अपनों से अच्छे तो पराये हैं !
