लाचार माँ बाप
लाचार माँ बाप
1----वर्तमान का नौजवान-------
नौजवान युग, समाज का खास
रौंदता अपने अहंकार के पैरों तले
संस्कृत, संस्कार खोखला, ढकोसला
मानता।।
आधुनिक विज्ञान, वैज्ञानिक की
विकृत परिभाषा देकर करता
खुद छद्म, छलावा मूल्यों का गुण गान।।
ज्ञान का अपभ्रंश नई पीड़ी का वंश
अंश युग की आशाओं का हंस युवा नौजवान।।
कभी दूर निकलता कभी दिखता पास
सच्चाई कुछ और ना दूर ना पास।।
ना समझ ना समझदार क्षुद्र स्वार्थ के वशीभूत
जीवन समाज, युग, राष्ट्र का करता स्वांग युवा नौजवान।।
कभी जवानी के जोश में
खो देता होश तो कभी गर्मी
में युग में नई चेतना क्रांति का
देता संदेश।।।
दिग्भ्रमित समाज का
युवा ओज नौजवान।।
यथार्थ में ना तो आज युवा में
चेतना जागृती की क्रांति क्रोध की आग।
हैं ना ही जोश उत्साह
युवा आज भटक गया है ।
या यूं कहें कि वह अटक गाया है।
अँधेरों में भटक रहा है रौशनी के
लिये तरसता नौजवान।।
ना उसे कर्तव्य, दायित्व का है बोध
ना पैदा करने वाले मां बाप की
सुध दोराहे ,चौराहे ,सड़क ,फुटपाथ
चाय ,पान की दुकान नशा नशेमन
जान की तलाश में हैं नौजवान।।
हीरोइन, हशीश, अफीम हुए महंगे
अब तो पेट्रोल आयोडेक्स कफ सिरप बाम
युवा पसंद का नशा युवा पीढ़ियों
को करता नाश नौजवान।।
कलम पकड़ना जानते नहीं
सिगरेट बीड़ी की पीने का
अलहदा अंदाज़ कभी दीवार
के अमिताभ स्टाइल में बीड़ी पीते
कभी हम दोनों की देवानंद स्टाइल
सिगरेट का कश मारते बाल की
स्टाइल जैसे चिड़ी मार नौजवान।।
2--माँ बाप और नौजवान संतान--
वाह आज युग के नौजवान
कुछ तो शर्म करो अपने पैदा
करने वालों पर रहम करो।।
पैदा करने वाले को ना मानो भगवान
कम से कम बने रहने दो इंसान।
जब पैदा होती संतान
मां बाप की बांछे खिलती
जागते अरमान बेटों के
जन्म पर खुशियों हजार।।
जमीं आसमान माँ
की ममता का आंचल
दूध की धार बेटे पर न्योछावर
जीवन कि आशाओं का संचार।।
बलाएं लेती दुआएँ देती जागती
आंखों से सपने देखती बेटे को
अपने आँचल में समेटती जैसे समेट लेती
खुशियों का ब्रह्मांड।।
बाप एक कर देता धरती आसमान
कभी गोद ,कभी कंधे पर, बैठता
उंगली पकड़कर सारी दुनिया के
सपनों की हकीकत पर इतराता ।।
करता नाज़ दुनिया को बतलाता
मेरी संतान मेरे खून खानदान का रौशन चिराग
हमारा अभिमान बढ़ाएगा मेरा दुनिया में मान।।
काल समय अपनी निरंतर गति से
चलता जाता बढ़ती जाती संतान।।
3---लायक नालायक संतान-----
माँ बाप अपनी पूरी क्षमता से संतान
की परवरिश पर लुट मिट जाते
संतान लायक हुई तो रोजी रोजगार
में दूर चले जाते।।
माँ बाप का जमीं
आसमान का अरमान साथ लिए जाते
गर संतान पढ़ लिख कर बेरोजगार।।
बुजीर्गीयत में माँ बाप के कंधे के
बोझ जिसे बनना था कंधे का सहारा
वही कंधे का बेसहारा ।।
दोनों ही स्थितियों में संतानें करती है
माँ बाप से प्यार मगर हालात के
शिकार खुद पे शर्मशार।।
गर संतान नालायक हुई तो पल
प्रहर दिन रात माँ बाप की समस्या
पीड़ा का प्रवाह।।
बेटी तो माँ बाप से आखिरी सांस तक
करती प्यार माँ बाप हैसियत से अपने
जिसके साथ देते बाँध।।।
सुख हो या दुख हो उसी संग देती जिंदगी गुजार ।।
उफ तक नहीं करती मां बाप से
शिकवा शिकायत नहीं करती मौका
निकल कर माँ बाप की सेवा करती।।
4-- परिस्थितियों के शिकार माँ बाप
- - संतान---
माँ बाप बुढ़ापे में गर लायक बेटे
बहु के रहते घर गर बेटे बहु दोनों
रोजगार में व्यस्त बूढ़े माँ बाप के लिए
समय नहीं रहता ।।
बूढ़े बाप का काम भाजी, तरकारी
और बाज़ार पोते को
स्कूल ले जाना लाना बुढ़ापे में
सेहत का नाम।।
मोहल्ले के पार्क में हम उम्र से गप्पे
लड़ाना बचपन जवानी के दिनों का
याद की बात।।
बूढ़ी माँ बहु के आदेश निर्देश का
करती इंतज़ार पोती पोते की देख
भाल घर की सफाई कपड़े की धुलाई
जीवन का दिन रात।।
जवानी में संतानों की आवश्यकता के
लिये खुद की जरूरतों से लेते मन मार
बुढ़ापे में संतान ही जरूरतों को देती मार।।
गर नालायक हुआ बेटा पल
प्रहर सीने पर मूंग की दलता दाल।।
जिंदगी की कमाई जोर जबरदस्ती से
हक की दुहाई देकर छीन लेता ।।
घर को मैखाना ऐयाशी का अड्डा
समझता ।।
मां बाप के अरमानों का लम्हा
लम्हा कत्ल करता।।
ऐसी संतानों से मां बाप
की जिंदगी का नर्क दुनिया और संतान
ही यमराज।।
बेटा पढ़ लिखकर जाए देश विदेश
कुछ तो माँ बाप का रखते ख्याल
कुछ माँ बाप को देते बिसार।।
जो आज संतान नौजवान है
उसे इल्म नहीं की कल उसे
भी आएगी बुढ़ापा ।।
उसकी भी
होंगी संतान जैसा बोयेगा वही
जिंदगी में काटेगा बुढ़ापा।।
उसकी वजह से माँ बाप बेबस
लाचार कल तू भी होगा बेबस
लाचार ।।
जिंदगी से मुक्ति
की कर रहा होगा गुहार।।
