क्यूँ
क्यूँ
क्यू हर बार अपनी खुशियों को
खोना पड़ता है.....
क्यू हर बार दूसरों की खुशी के लिए
अपनी खुशी कुर्बान करनी पड़ती है....
क्यू दूसरों की खुशी में
अपनी खुशी ढूंढते हैं हम...
हर बार क्यू अकेले रहते हैं हम...
सब होकर साथ
अकेले हम.....
क्यू अपनी खुशी
यहां वहां ढूंढते रहते हैं हम..
क्यू अपना दुख दर्द..
किसी को बता नहीं सकते हैं
इतना गुस्सा इतना तकलीफ
किस के सामने ला नहीं सकते हैं हम..
हर बार क्यू आंसुओं को चुपाकर
लोगों को हंसी दिखानी पड़ती है...
किसको बताएं अपनी बातें
किसको जताएं है अपनी तकलीफ.....
नसीब ही नहीं देता साथ हमर
जिसको भी दिल से अपना माना
वही हमसे दूर जाने लगे
देख चुकी हूं जीवन का सच
जिसके साथ खुश रहे
वही हमसे दूर जाने लगे....
रह गए हैं अकेले हम..
रोज यही सोचते रेते हैं हम...
