क्यों
क्यों
जमाने के गम
मुस्कुरा कर हर
रोज हम उठाते गये,
बीते जख्मों को भूलाकर
अंगारों पर भी
कदम बढ़ाते गये,
जिजिविषा को गिरवी रख
सांसों की हर कर्ज
हम चुकाते गये,
भीतर लपट उठती रही
और समंदर को बांध
हम उसे जलाते गये,
कहो न !
फिर ये कैसे हुआ कि
झण भर में मेरा
नियंत्रण न रहा कि
बांध टूटा,
अश्कों के दो मोती तुम्हारे
छलछला उठे और
हम उसे संभाल भी न सके।